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एकाग्रता
जो हलचल संचित करती और एकाग्र करती है वह फैलाने और बिखेरनेवाली हलचल से कम आवश्यक नहीं है । १३ अप्रैल, १९३५,
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एकाग्रता किसी प्रभाव को लक्ष्य नहीं बनाती, वह सरल और चिरजीवी होती है ।
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किसी यथार्थ लक्ष्य पर एकाग्रता विकास में सहायक होती है ।
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हम लक्ष्य पर जितने अधिक एकाग्र होंगे, वह उतना ही अधिक खिलेगा और सुव्यक्त होगा ।
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योगी अपनी धारण करने की क्षमता द्वारा या वस्तुओं व्यक्तियों और शक्तियों के साथ सक्रिय तादात्म्य द्वारा जानता है । ११ अप्रैल, १९३५
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''ज्ञान केवल सचेतन तादात्म्य द्वारा आ सकता है क्योंकि वही सच्चा ज्ञान है-अपने आपसे अभिज्ञ सत्ता'' --श्रीअरविन्द
आसपास की चीजों और लोगों के साथ हमेशा एक प्रकार का अचेतन तादात्म्य रहता है; लेकिन इच्छाशक्ति और अभ्यास द्वारा तुम किसी व्यक्ति या किसी चीज पर एकाग्र होना सीख सकते हो और अपने-आपको सचेतन रूप से उस व्यक्ति या चीज के साथ अभिन्न कर सकते हो और इस
५५ तादात्म्य द्वारा उस व्यक्ति या वस्तु की प्रकृति को जान सकते हो । २० मई, १९५५ *
जो सावधान हो उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है ।
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कहा जाता है कि सभी सफल गतिविधियों के मूल स्रोत में होती है दत्तचित्त सावधानी की क्षमता । वास्तव में मनुष्य की क्षमता और उसका मूल्य एकाग्रतापूण मनोयोग से आंका जा सकता है ।१
इस एकाग्रता को प्राप्त करने के लिए साधारणत: यह उपाय बताया जाता है कि आदमी अपना क्रियाकलाप कम कर ले, कोई चुनाव कर ले और उस चुनाव तक ही सीमित रहे ताकि वह अपनी ऊर्जा, अपने मनोयोग को बिखेर न दे । सामान्य मनुष्य के लिए यह उपाय अच्छा है, कभी-कभी अनिवार्य भी होता है । लेकिन तुम इससे ज्यादा अच्छी चीज की कल्पना कर सकते हो ।
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कभी मैं मन करता करने की कोशिश करता हूं, कभी समर्पण करने की कोशिश करता हूं और कभी चैत्य को खोजने की कोशिश करता हूं | इस तरह मैं अपने ध्यान को किसी चीज पर केन्द्रित नहीं कर सकता | मुजे पहले किसके लिए कोशिश करनी चाहिये ?
सभी करना चाहिये, और हर चीज तब जब वह सहज रूप से आये । (१६ अक्तूबर, १९६४)
१ माताजी की टिप्पणी-साधारणत: यह विषय में रस होने और उसके लिए विशेष आकर्षण से आता है ।
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